Saturday, August 1, 2009

safar....

सफ़र होता अगर ज़िन्दगी का
इस कदर आसां ,
तो चारों तरफ मंजिल को , क़दमों से मिलाने वाली राहें ही दिखतीं .
आसां नहीं है पाना इसे ,
देखा है तुमने आखें मूँद के जिसे .
सच करो इस कदर सपना अपना ,
कि राहे ज़िन्दगी आसां नज़र आने लगे.
सोचो ज़रा कुछ, और पहल करो इस काम कि.
फिक्र नहीं करना तुम , कांटे तो आएंगे ही राहों में तुम्हारी ,
कुछ करो ऐसा कि ,
फूल ही फूल बिछे हों राहों में तुम्हारी .
इंसान वही है जो , मुश्किलों में मुस्कुराने लगे .
देखकर जिसको रोता हुआ भी गुनगुनाने लगे .
झेलनी तो पड़ती ही है , राह में बिछे काँटों की मार ,
इंसान वही है जो , इसे झेलते हुए
कामयाबी की तरफ कदम बढाने लगे ......